एक और दिन....
यह साल एक दिन ज़्यादा ले आया है,
अचानक यूँ ख़्यालों का सैलाब ले आया है!
कोई साज़िश ही है शायद,
जो यह बिन माँगे पलों का ख़ज़ाना ले आया है!
सोच रही हूँ... आप क्या कीजिएगा?
सुबह से शाम बस यूँही गवाँ दीजिएगा?
माँ हूँ - तो एक दिन के लिए....
रोक लूँ बचपन अपने बच्चों का?
किलकारियाँ बांध लूँ किसी गठरी में?
आँचल ओढ़ा दूँ या लोरी सुना दूँ?
या हाथों से अपने खाना खिला दूँ?
एक बार फिर माथे पर हाथ फेर लूँ?
सुबह से शाम.....
बहन हूँ - तो एक दिन के लिए....
भाई-बहन की शरारतें एक बार और सहन कर लूँ?
बचपन की यादें फिर से ताज़ा कर लूँ?
माँ-पिताजी की डाँट से एक बार और बचा लूँ?
उनके दोस्तों को पार्टी देने के लिए अपना जेब-खर्च न्यौछावर कर दूँ?
एक बार फिर उनका होमवर्क कर दूँ?
सुबह से शाम.....
बेटी हूँ, बहु हूँ - तो एक दिन के लिए....
माँ-पिताजी के लाड और दुलार का स्वाद दोबारा चख लूँ?
सेवा और मेवा, दोनों का ही आनंद ले लूँ?
उनकी सादगी और त्याग को नत-मस्तक कर दूँ?
कभी प्यार, तो कभी फटकार, सब को गले लगा लूँ?
एक बार फिर उनका सिर गर्व से ऊँचा कर दूँ?
सुबह से शाम.....
सहेली हूँ - तो एक दिन के लिए....
सबसे पहला फ़ोन उनको लगाकर अपने ख़ुशी और ग़म बाँट लूँ?
चार्जर माँगने के बहाने हाल-चाल पूछँ आऊँ?
थोड़े आँसू पोंछ लूँ, थोड़ी मुस्कुराहटें बाँट आऊँ,
जब कोई और रास्ता ना दिखे तो शॉपिंग ही कर आऊँ?
एक बार फिर चाय पर चर्चा कर लूँ?
सुबह से शाम.....
पत्नी हूँ - तो एक दिन के लिए....
फिर से सातों वचन दोहरा दूँ?
नोंक-झोंक करते करते प्यार बढ़ा दूँ?
हसीन यादों का पिटारा खोल दूँ?
रोज़मर्रा की उलझनों से परे, कुछ पल हमारे लिए चुरा लूँ?
एक बार फिर नए प्यार का एहसास करा दूँ?
सुबह से शाम....
-नम्रता राठी सारडा
(ड्रामा क्वीन रीलोडेड)
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