वहीं मिलूँगी तुम्हें…
वहीं मिलूँगी तुम्हें…
जब रात ढलने को होगी,
पर भोर ना भई होगी,
तब मिलूँगी तुम्हें।
वो रात बिताने… मिलूँगी तुम्हें!
जब लौ बुझने को होगी,
पर हल्की सी रौशनी बिखर रही होगी,
तब मिलूँगी तुम्हें।
वो अंधकार मिटाने… मिलूँगी तुम्हें!
जब बादल तो छाये होंगे,
पर बूँदें ना बरसी होंगी,
तब मिलूँगी तुम्हें।
वो प्यास बुझाने… मिलूँगी तुम्हें!
जब बरसात से धरा सराबोर होगी,
पर इंद्रधनुष ना इतराया होगा,
तब मिलूँगी तुम्हें।
वो रंग समेटने… मिलूँगी तुम्हें!
जब फूल खिलने को होगा,
पर भँवरा ना मंडराया होगा,
तब मिलूँगी तुम्हें।
वो ख़ुशबू बिखेरने… मिलूँगी तुम्हें!
जब आग़ाज़ तो किया होगा,
पर मंज़िल को ना पाया होगा,
तब मिलूँगी तुम्हें।
वो सफ़र तय करने… मिलूँगी तुम्हें!
- ड्रामा क्वीनः रीलोडेड
[Drama Queen Reloaded]
(नम्रता राठी सारडा)
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