मेरे अंदर के आलोचक
मेरे अंदर के आलोचक..
तू ज़रा सी रहमत बरसा,
ज़रा हौसला दे, ज़रा हिम्मत बंधा!
तू ज़रा सी रहमत बरसा,
ज़रा हौसला दे, ज़रा हिम्मत बंधा!
उँगली उठाने वाले तो बहुत मिलेंगे…
तू ज़रा भरोसा जता,
ज़रा हाथ थाम, ज़रा हमराही बन जा!
जो गिर गई मैं तो मुझे फिर से खड़ा कर…
तू ज़रा डाँट डपट के समझा,
ज़रा आँसू पोंछ, ज़रा गले लगा!
गर थक के मैं हार ही मान लूँ…
तू ज़रा आराम मुझे करने दे,
ज़रा धैर्य बढ़ा, ज़रा पथ दर्शा!
गर मंज़िल को पा लूँ तो पीठ मेरी थपथपा…
तू ज़रा शाबाशी दे,
ज़रा सराहना कर, ज़रा ताली बजा!
मेरे अंदर के आलोचक…
तू ज़रा सच और भ्रम में फ़र्क़ दिखा,
ज़रा रौशनी कर, ज़रा आईना दिखा!
-नम्रता सारडा (ड्रामा क्वीनः रीलोडेड)
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