वो चिट्ठी



वो चिट्ठी और उसमे वो सूखे हुए लाल ग़ुलाब की पंखुड़ियाँ,

आज अचानक हाथ लग गये, जब कपाट से वो पुराना बक्सा निकाला!


कभी खिला करते थे… ग़ुलाब और अल्फ़ाज़ दोनों ही…

आज सिर्फ़ तरसती यादें बन कर रह गए हैं!


याद है मुझे उस दिन हल्क़ी सी बारिश हो रही थी,

जब ये ग़ुलाब तुमने अपने बालों से निकाल के मुझे दिया था!


तुमने कहा था… इसे मेरी याद समझ कर संजो कर रखना,

मैं दोबारा अपने बालों में तुमसे ग़ुलाब लगवाने ज़रूर आऊँगी!


उसके बाद कई मौसम आये और कई मौसम गये,

पर मानो वो ग़ुलाबी लम्हा वहीं ठहर गया….!


वो चिट्ठी आज भी उस ग़ुलाब की ख़ुशबू से महक रही है…

बस कमी है तो…. तुम्हारे बालों की!

-नम्रता सारडा (ड्रामा क्वीन - रीलोडेड)

Comments

Popular posts from this blog

Good Cop, Bad Cop

Jo Laut Ke Ghar Naa Aaye...!

THE BIG FAT INDIAN WEDDING