और वो खेल…


घर-घर खेलते खेलते कब सपनों के घर के लिए EMI भरने लगे,

गुड्डे-गुड़ियों से खेलते हुए अब अपने बच्चों को बड़ा करने में लग गए।


लुका-छिपी के खेल में ना जाने वो फ़ुरसत के पल कहाँ छिप गए,

दिन-रात गली में क्रिकेट खेलने वालों के लिए अब IPL देखने जितने ही पल रह गए।


वो पतंग का दौर और ज़ोर से ‘वो काट’ की धूम,

अब तो बस laptop के virtual वर्ल्ड में दिखता है ज़ूम!!


कंचे तो मानो सबसे बड़ा ख़ज़ाना हुआ करते थे,

अब तो बस अगली पीढ़ी के लिए bank-balance का जुगाड़ किए जा रहें हैं!


ये क्या खेल खेल गई ज़िंदगी - जीत के भी थक-हार रहें हैं,

Rat-race में आगे रहने के चक्कर में गिल्ली डंडा पीछे छोड़ कर  गए हैं!


-नम्रता सारडा (ड्रामा क्वीन - रीलोडेड)


Comments

Popular posts from this blog

THE BIG FAT INDIAN WEDDING

Good Cop, Bad Cop

एक और दिन....