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Showing posts from April, 2023

और वो खेल…

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घर - घर   खेलते   खेलते   कब   सपनों   के   घर   के   लिए  EMI  भरने   लगे , गुड्डे - गुड़ियों   से   खेलते   हुए   अब   अपने   बच्चों   को   बड़ा   करने   में   लग   गए। लुका - छिपी   के   खेल   में   ना   जाने   वो   फ़ुरसत   के   पल   कहाँ   छिप   गए , दिन - रात   गली   में   क्रिकेट   खेलने   वालों   के   लिए   अब  IPL  देखने   जितने   ही   पल   रह   गए। वो   पतंग   का   दौर   और   ज़ोर   से  ‘ वो  काट’  की   धूम , अब   तो   बस  laptop  के  virtual  वर्ल्ड   में   दिखता   है   ज़ूम !! कंचे   तो   मानो   सबसे   बड़ा   ख़ज़ाना   हुआ   करते   थे , अब   तो   बस   अगली   पीढ़ी   के...

वो चिट्ठी

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वो चिट्ठी और उसमे वो सूखे हुए लाल ग़ुलाब की पंखुड़ियाँ, आज अचानक हाथ लग गये, जब कपाट से वो पुराना बक्सा निकाला! कभी खिला करते थे… ग़ुलाब और अल्फ़ाज़ दोनों ही… आज सिर्फ़ तरसती यादें बन कर रह गए हैं! याद है मुझे उस दिन हल्क़ी सी बारिश हो रही थी, जब ये ग़ुलाब तुमने अपने बालों से निकाल के मुझे दिया था! तुमने कहा था… इसे मेरी याद समझ कर संजो कर रखना, मैं दोबारा अपने बालों में तुमसे ग़ुलाब लगवाने ज़रूर आऊँगी! उसके बाद कई मौसम आये और कई मौसम गये, पर मानो वो ग़ुलाबी लम्हा वहीं ठहर गया….! वो चिट्ठी आज भी उस ग़ुलाब की ख़ुशबू से महक रही है… बस कमी है तो…. तुम्हारे बालों की! -नम्रता सारडा (ड्रामा क्वीन - रीलोडेड)

चलो ना बाँटते हैं…

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चलो   ना   बाँटते   हैं पुरानी   यादें … बचपन   के   वो   क़िस्से , वो   अल्हड़्पन   के   ड्रामे ! वो   मम्मी   का   आँखें   दिखाना , वो   पापा   का   बचा   लेना …. चलो   ना   बाँटते   हैं ! चलो   ना   बाँटते   हैं   शरारती   यादें … साल   भर   वो   स्कूल   की   मस्तियाँ , वो   टीचरों   को   करना   तंग ! वो   टिफ़िन   ब्रेक   की   लज़ीज़   बातें , वो   घर   ना   जाने   का   मन …. चलो   ना   बाँटते   हैं ! चलो   ना   बाँटते   हैं मस्ती   भरी   यादें … गर्मियों   में   नानी   के   घर   का   वो   आमरस , वो   छुपन - छुपाई   के   झगड़े ! वो   रात   को   छत   पर   भूतों   की   कहानियाँ   सुनना , वो   भारी   भारी   बैग   भर ...

मेरे अंदर के आलोचक

मेरे   अंदर   के   आलोचक .. तू   ज़रा   सी   रहमत   बरसा , ज़रा   हौसला   दे ,  ज़रा   हिम्मत   बंधा ! उँगली   उठाने   वाले   तो   बहुत   मिलेंगे … तू   ज़रा   भरोसा   जता , ज़रा   हाथ   थाम ,  ज़रा   हमराही   बन   जा ! जो   गिर   गई   मैं   तो   मुझे   फिर   से   खड़ा   कर … तू   ज़रा   डाँट   डपट   के   समझा , ज़रा   आँसू   पोंछ ,  ज़रा   गले   लगा ! गर   थक   के   मैं   हार   ही   मान   लूँ … तू   ज़रा   आराम   मुझे   करने   दे , ज़रा   धैर्य   बढ़ा ,  ज़रा   पथ   दर्शा ! गर   मंज़िल   को   पा   लूँ   तो   पीठ   मेरी   थपथपा … तू   ज़रा   शाबाशी   दे , ज़रा   सराहना   कर ,  ज़रा   ताली   बजा ! मेरे ...